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Friday, 10 November 2017

पारस का अंग

पारस का अंग

अथ श्री दरियावजी महाराज की दिव्य वाणीजी का " पारस का अंग " आरंभ होता है । राम राम ।

जन दरिया षट् धातु का, पारस कीया नाँव । 
परसा सो कंचन भया, एक रंग इक भाव (1) 
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि पारस का स्पर्श करते ही लोहे का रंग भी सोने जैसा हो जाता है तथा भाव (कीमत) भी सोने जैसा ही हो जाता है । इसी प्रकार जो शिष्य सतगुरु के सान्निध्य में रहता है,वह दानव से मानव, मानव से देवता और देवता से प्रभु प्राप्ति का अधिकारी बन जाता है । राम राम  !

दरिया छुरी कसाब की, पारस परसै आय । 
लोह पलट कंचन भया, आमिष भखा न जाय (2)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि कसाई की छुरी को भी पारस के साथ स्पर्श किया जाता है तो वह भी सोना बन जाती है । तत्पश्चात उससे गलत कार्य अर्थात पशु संहार नहीं किया सकता ।इसी प्रकार महापुरुषों का संग करने से मनुष्य के अंदर जो आसुरी संपदा होती है, वह देवी संपदा में परिवर्तित हो जाती है तथा उसके अंदर साधु लक्षण उभर आते हैं । राम राम  !

लोह काला भीतर कठिन, पारस परसै सोय । 
उर नरमी अति निर्मला, बाहर पीला होय (3) 
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि लोहा बाहर से काला होता है तथा भीतर से भी कड़ा होता है परन्तु पारस से स्पर्श करने के पश्चात वह बाहर से भी पीला हो जाता है तथा भीतर से भी नर्म और निर्मल हो जाता है । इस प्रकार पारस का स्पर्श करने से लोहे में जो परिवर्तन होता है वह स्थाई होता है । राम राम  !

पारस परसा जानिए, जो पलटै अंगो अंग । 
अंगो-अंग पलटै नहीं, तो है झूठा संग (4) 
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि पारस वही है जिसे परसने के पश्चात लोहा सोना बन जाता है परन्तु यदि वह सोना नहीं बनता है तो उसने झूठा ही संग किया है । इसी प्रकार संतों की संगत में रहकर भी यदि जीव का स्वभाव नहीं बदलता है तो जान लेना चाहिए कि अभी संतों का संग नहीं किया है, क्योंकि सतपुरूषों का संग करने से तो पशु में भी परिवर्तन आ जाता है । राम राम  !

पारस जाकर लाइये, जाके अंग में धात । 
क्या लावे पाषाण को, घस घस होय संताप  (5) 
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि पारस तो सही है परन्तु यदि वह किसी साधारण पत्थर को स्पर्श करते हैं तो चाहे उसके ऊपर  पारस को कितना ही घसते रहो, वह सोना नहीं बनेगा । इसी प्रकार  जिस मनुष्य के अन्दर मानवता ही नहीं है तो उसे चाहे सतगुरु कितना ही समझाते रहें, उसमें चेतनता नहीं आएगी । राम राम!

दरिया काँटी लोह की, पारस परसै सोय।
धात वस्तु भीतर नहीं, कैसे कंचन होय (6) 
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि लोहे को जब तपा-तपाकर साफ किया जाता है तब एक तरफ तो शुद्ध लोहा एकत्रित हो जाता है तथा एक तरफ काँटी अर्थात अशुद्ध लोहा एकत्रित हो जाता है । उस लोहे की काँटी के ऊपर कितना ही पारस रगड़ेंगे तो भी वह काँटी सोना नहीं बन सकती । आचार्यश्री आगे फरमाते हैं कि जीवन की दिशा बदल दो । जीवन को भौतिकवाद से तोड़कर आध्यात्मिक वाद की ओर मोड़ दो । राम राम!

इति श्री दरियावजी महाराज की दिव्य वाणीजी का "पारस का अंग" संपूर्णम । राम राम 

आदि आचार्य श्री दरियाव जी महाराज एंव सदगुरुदेव आचार्य श्री हरिनारायण जी महाराज की प्रेरणा से श्री दरियाव जी महाराज की दिव्य वाणी को जन जन तक पहुंचाने के लिए वाणी जी को यहाँ डिजिटल उपकरणों पर लिख रहे है। लिखने में कुछ त्रुटि हुई हो क्षमा करे। कुछ सुधार की आवश्यकता हो तो ईमेल करे dariyavji@gmail.com .

डिजिटल रामस्नेही टीम को धन्येवाद।
दासानुदास
9042322241

मिश्रित साखी का अंग

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