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Friday, 8 September 2017

साध का अंग

साध का अंग

अथ श्री दरियावजी महाराज की दिव्य वाणीजी का साध का अंग प्रारंभ ।

दरिया लक्षण साध का, क्या गिरही क्या भेख ।
निःकपटी निसंक रहे, बाहर भीतर एक  (1)

आचार्यश्री दरियावजी महराज फरमाते हैं कि साधना करने वाले भेषधारी तथा गृहस्थी सभी साधकों को साधु कहते हैं । सच्चे साधु का तो यही लक्षण है कि वह सदा निष्कपटी और निःशंक रहता है तथा न ही कभी उसके मन में परमात्मा के प्रति किसी प्रकार का संशय उत्पन्न होता है । वह तो सदा बाहर भीतर एक रहता है । राम राम!

सतगुरु को परसा नहीं, सीखा शब्द सुहेत ।
दरिया कैसे नीपजै , तेह बिहुणा खेत (2)

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि सतगुरु के सानिध्य में नहीं आए तथा यूँ ही मनमुखी होकर राम-राम करने लग गये तो इससे कार्य की सिद्धि नहीं होगी । जिस प्रकार बिना तेह के अर्थात जब तक भूमी अंदर से गीली नहीं होती तब तक खेत में बीज नहीं ऊगता है । उसी प्रकार जिसने सतगुरु से हेत नहीं किया तथा शब्द से हेत कर लिया, उसका कभी कल्याण नहीं हो सकता । राम राम  !

सत्त शब्द सतगुरु मुखी, मत गयन्द मुख दन्त ।
यह तो तोड़ै पोल गढ़, वह तोड़ै करम अनन्त  (3) 

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जिस प्रकार हाथी से लगे हुए हाथी के दांत बड़े बड़े गढ़ों की पोल को नष्ट कर देते हैं । उसी प्रकार सतगुरु से लगा हुआ शिष्य अनन्तानन्त कठिन कर्मों  को तोड़कर नष्ट कर देता है । राम राम  !

दाँत रहै हस्ती बिना, तो पोल न टूटे कोय ।
कै कर धारै कामिनी, कै खेलाराँ होय (4)

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जो दाँत हाथी से अलग होता है , उसके तो केवल खिलोने अथवा स्त्रियों के हाथ के कंगन ही बन सकते हैं । उसके द्वारा पोल टूटनी तो असंभव है । उसी प्रकार आध्यात्मिक जीवन में साधक ऐसे ही मनमुखी होकर, सतगुरू का आश्रय लिये बिना ही साधना करता है तो उसे साधना में सफलता मिलनी असंभव है । राम राम!

साध कह्यो भगवन्त कह्यो, कहै ग्रन्थ और वेद ।
दरिया लहै न गुरू बिना, तत्त नाम का भेद (5)

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि मैं अकेला ही नहीं , सभी सन्त और भगवन्त अर्थात भगवान तथा ईश्वर कोटि के महापुरुष भी यही बात कहते हैं एवं वेदों तथा ग्रन्थों में भी  यही बात आती है कि सतगुरु के बिना राम नाम के तत्व का भेद प्राप्त नहीं होता है । अतः तत्व के विषय में समझने के लिए ही सतगुरु की आवश्यकता है ।राम राम  !

राजा बाँटै परगना, जो गढ़ को पति होय ।
सतगुरु बाँटै रामरस , पीवै बिरला कोय (6)

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि पुराने जमाने में जो शूरवीर किसी बहुत बड़े संकट से देश को उबार लेते थे , उनके ऊपर प्रसन्न होकर राजा उन्हें गाँव वगैरह ईनाम में देते थे । इसी प्रकार सतगुरु रामरस बाँटते हैं परन्तु कोई बिरले ही उसे पी सकते हैं । प्रत्येक व्यक्ति रामरस नहीं पी सकता । राम राम!

मतवादी जानै नहीं, ततवादी की बात ।
सूरज ऊगा उल्लवा , गिनै अंधारी रात (7)

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जो व्यक्ति मत में बंधे हुए होते हैं, वे तत्ववादियों की बात नहीं जानते हैं । सूर्य उदय होने पर भी उल्लू तो यही समझता है कि अभी अंधेरी रात है । उल्लू बेचारा तो मत में बंधा हुआ अज्ञानी है । परमात्मा के प्यारे भक्त ही भगवत्कृपा से तत्व के गूढ़ रहस्य को जान सकते हैं । राम राम!

भीतर अंधारी भींत सो,बाहर ऊगा भान ।
जन दरिया कारज कहा , भीतर बहुली हान (8)

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि बाहर सूर्य उदय हो गया है परन्तु भीतर में अन्धकार है तो इससे कोई लाभ नहीं होगा । अतः भीतर से प्रकाश होना आवश्यक है। अन्धकार का तात्पर्य अंतःकरण में अज्ञान से है जिसे अधिक से अधिक राम नाम जाप द्वारा मिटाया जा सकता है । राम राम!

सीखत ज्ञानी ज्ञान गम, करै ब्रह्म की बात ।
दरिया बाहर  चाँदना , भीतर काली रात  (9) 

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि झूठे ब्रह्मज्ञानी वेदों के चार पांच महावाक्यों का वर्णन करते रहते हैं कि मैं ही ब्रह्म हूँ । अतः मुझे भजन-ध्यान और धर्म पुण्य करने की क्या आवश्यकता है । इस प्रकार से बाहर तो प्रकाश होगा परन्तु भीतर अन्धेरा होगा तो कल्याण संभव नहीं है । भीतर  में प्रकाश करने के लिए तो श्वासोश्वास नामजाप करना होगा । राम राम  !

बाहर कुछ समझै नहीं, जस रात अंधेरी होत ।
जन दरिया भय कुछ नहीं, भीतर जागै जोत (10) 
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि बाहर तो अंधेरा है परन्तु यदि अंदर में  प्रकाश है तो कोई भय की बात नहीं है । अर्थात आध्यात्मिक ज्ञान तो है परन्तु भौतिक ज्ञान नहीं है तो उसका कल्याण अवश्य हो जाएगा । अध्यात्म ज्ञान हेतु महापुरूषों का संग ही परम सुख का साधन है । राम राम !

अथ श्री दरियावजी महाराज की दिव्य वाणीजी का साध का अंग संपूर्ण हुआ । राम राम

आदि आचार्य श्री दरियाव जी महाराज एंव सदगुरुदेव आचार्य श्री हरिनारायण जी महाराज की प्रेरणा से श्री दरियाव जी महाराज की दिव्य वाणी को जन जन तक पहुंचाने के लिए वाणी जी को यहाँ डिजिटल उपकरणों पर लिख रहे है। लिखने में कुछ त्रुटि हुई हो क्षमा करे। कुछ सुधार की आवश्यकता हो तो ईमेल करे dariyavji@gmail.com .

डिजिटल रामस्नेही टीम को धन्येवाद।
दासानुदास
9042322241

मिश्रित साखी का अंग

मिश्रित   साखी   का   अंग अथ   श्री   दरियावजी   महाराज   की   दिव्य   वाणीजी   का  "  मिश्रित   साखी   का   अंग  "  प्रारंभ  ...